ग्लोबल वार्मिंग क्या है?

Global Warming Is Global Warning


ग्लोबल वार्मिग
ग्लोबल वार्मिग

समस्त ऊर्जा का स्रोत सूर्य है। सूर्य से प्राप्त होने वाली कुछ ऊर्जा हरी वनस्पतियों द्वारा प्रकाशसंश्लेषण के लिए ग्रहण कर ली जाती है। शेष ऊर्जा पृथ्वी की ऊपरी सतह को गरम कर देती है। सूर्य की ऊष्मा से गरम होने - के बाद जब पृथ्वी ठण्डी होने लगती है, तब ऊष्मा पृथ्वी से बाहर वायुमण्डल में विसरित होने लगती है। लेकिन कार्बन डाइऑक्साइड, क्लोरोफ्लोरोकार्बन, नाइट्रिक आक्साइड, क्लोरोआक्साइड एवं मीथेन आदि गैसें इस ऊष्मा का कुछ भाग अवशोषित कर लेती हैं एवं शेष बची ऊष्मा को पुनः पृथ्वी पर परावर्तित कर देती हैं। इस प्रक्रिया में वायुमंडल के निचले भाग में अतिरिक्त ऊष्मा एकत्र हो जाती है।

विगत कुछ वर्षों में इन ऊष्मारोधी गैसों की मात्रा वायुमण्डल में बढ़ जाने के कारण वायुमण्डल के औसत ताप में वृद्धि हो गयी है, इसे ही “ग्रीनहाउस प्रभाव" कहा गया है। बढ़ती जनसंख्या की विभिन्न आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु परोक्ष या अपरोक्ष रूप से व्यापक पैमाने पर वनों का विकास हुआ है।

प्रकाशसंश्लेषण की क्रिया वायुमण्डल में कार्बन डाइआक्साइड की मात्रा को संतुलित रखती है, जबकि वनों का विनाश इसको बढ़ाता है। ग्रीनहाउस प्रभाव 'विश्व तापमान वृद्धि' से सीधे सम्बन्धित है। यू एन ई पी ने विश्व पर्यावरण दिवस पर (5 जून 1989) को विश्व समुदाय को सचेत करने के लिए एक सही नारा ‘ग्लोबल वार्मिंग : ग्लोबल वार्निंग' दिया है। 

  • ग्रीन हाउस प्रभाव के कारण :-

रेफ्रिजरेटरों तथा एयरकंडीशनरों से निकलने वाली क्लोरोफ्लोरोकार्बन गैसें वायुमण्डल के ऊपरी भाग में स्थित जीवन रक्षक ओजोन परत को नष्ट करती हैं जिससे ग्रीनहाउस प्रभाव में वृद्धि होती है।

रेफ्रिजरेटर
रेफ्रिजरेटर

वनों के विनाश के कारण वायुमण्डल में कार्बन - डाइऑक्साइड की वृद्धि हुई है। वैज्ञानिकों के एक आकलन के अनुसार प्रतिवर्ष दो अरब टन अतिरिक्त कार्बन डाइऑक्साइड वायुमण्डल में बढ़ रही है। औद्योगिकीकरण के कारण उद्योगों तथा भोजन निर्माण के लिए घरों में जीवाश्म ईंधनों जैसे कोयला, पेट्रोलियम तथा डीजल आदि पदार्थों के उपयोग में अत्यधिक वृद्धि हुई है। वर्तमान में लगभग चार अरब टन जीवाश्म इंधन का उपयोग हो रहा है, जिससे प्रतिवर्ष लगभग चार प्रतिशत कार्बन डाइऑक्साइड की वृद्धि होती है।

  • ग्रीन हाउस प्रभाव के दुष्परिणाम : 

ग्रीनहाउस प्रभाव से उत्पन्न प्रभाव में वृद्धि होती है संकट एक विश्वव्यापी पर्यावरणीय समस्या बन गयी है। वायुमण्डल - में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा में वृद्धि के कारण विगत पचास वर्षों में पृथ्वी के औसत ताप में 1°C की वृद्धि हो चुकी है। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि सन् 2050 तक पृथ्वी के तापक्रम में लगभग 4°C तक वृद्धि हो जायेगी जिससे संरक्षित ग्लेशियर पिघल जायेंगे और समुद्र के जल स्तर में 10 इंच से 5 फुट तक की वृद्धि होने की संभावना है। इससे समुद्र तटीय नगरों के समुद्र में डूबने और लगभग 118 मिलियन लोगों के बाढ़ से प्रभावित होने का खतरा है। ग्रीनहाउस प्रभाव से पृथ्वी के ताप में अत्यधिक वृद्धि से मौसम में भयंकर बदलाव आयेगा। सूर्य से निकलने वाली अल्ट्रावॉयलेट किरणें कैंसर जैसे भयानक रोग को जन्म देंगी। कहीं सूखा पड़ेगा, कहीं गरम हवाएं चलेंगी, कहीं - भीषण तूफान तो कहीं बाढ़ आयेगी।

  • ग्लोबल वार्मिंग और आर्थिक संकट : 

विश्व बैंक के पूर्व अर्थशास्त्री स्टर्न ने अपनी रिपोर्ट में ग्लोबल वार्मिंग के फलस्वरूप निकट भविष्य में होने वाले आर्थिक संकट का विश्लेषण किया था। उन्होंने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि यदि ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन स्तर में तत्काल कटौती नहीं की गयी तो भविष्य में 1990 के दशक में आई मंदी से भी बड़ा आर्थिक संकट पैदा हो सकता है। 

  • रिपोर्ट की मुख्य बातें:-

ग्लोबल वार्मिंग के चलते दुनिया भर में नौ ट्रिलियन डालर से अधिक की आर्थिक संपत्ति का नुकसान हो सकता है। यह राशि गत दो विश्व युद्धों और 1930 के महामंदी में हुए आर्थिक नुकसान से कहीं ज्यादा है। वायुमंडल का तापमान बढ़ने की वजह से सूखा, बाढ़ और समुद्र के जलस्तर में वृद्धि होने जैसी विकराल समस्याएं उत्पन्न होंगी। इस वजह से बीस करोड़ लोगों को बेघर होना पड़ेगा। निकोलस स्टर्न ने ग्लोबल वार्मिंग के इस खतरे से बचने के लिए विश्व के कुल सकल घरेलू उत्पाद की एक प्रतिशत राशि को इस संदर्भ में खर्च करने की जरूरत बताई गई है। ग्लोबल वार्मिंग के फलस्वरूप वन्य जीवों की करीब 40% प्रजातियां नष्ट हो जायेंगी और ग्लेशियरों के पिघलने से विश्व के छठवें हिस्से की आबादी के लिए पानी का संकट उत्पन्न हो जायेगा।

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