जानते हुए भी क्यों लेते हैं हम गलत फैसले? हैरान कर देगा यह नया शोध
क्या आपने कभी सोचा है कि हम अक्सर वही गलतियाँ क्यों दोहराते हैं, जिनसे हमें नुकसान होता है? चाहे वह जंक फूड खाना हो, फालतू खर्च करना हो, या किसी टॉक्सिक रिश्ते में वापस जाना हो—हम जानते हैं कि यह गलत है, फिर भी हम खुद को रोक नहीं पाते।
हाल ही में 'द जर्नल ऑफ न्यूरोसाइंस' (The Journal of Neuroscience) में प्रकाशित और यूनिवर्सिटी ऑफ बोलोग्ना (University of Bologna) द्वारा किए गए एक नए शोध ने इस पहेली को सुलझाया है। विज्ञान बताता है कि हमारे दिमाग का एक हिस्सा हमें पुरानी आदतों में फंसाए रखता है, भले ही वे हमारे लिए बुरी क्यों न हों।
क्या कहता है नया शोध? (The Science Behind It)
दिसंबर 2025 में प्रकाशित इस स्टडी में शोधकर्ताओं ने पाया कि हमारे फैसले हमारे आस-पास के माहौल और संकेतों (Cues) से बहुत ज्यादा प्रभावित होते हैं। कुछ लोगों का दिमाग इन संकेतों के प्रति बहुत ज्यादा संवेदनशील होता है।
वैज्ञानिकों ने लोगों को दो श्रेणियों में बांटा है:
साइन-ट्रैकर्स (Sign-trackers): वे लोग जो बाहरी संकेतों (जैसे विज्ञापन, नोटिफिकेशन की आवाज, या किसी जगह की महक) से तुरंत आकर्षित हो जाते हैं।
गोल-ट्रैकर्स (Goal-trackers): वे लोग जो अपने लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित रखते हैं और संकेतों से कम विचलित होते हैं।
शोध में पाया गया कि 'साइन-ट्रैकर्स' वो लोग होते हैं जो बार-बार गलत फैसले लेते हैं।
क्यों होता है ऐसा? (Deep Analysis of the Study)
इस शोध का सबसे गहरा और चौंकाने वाला पहलू यह है कि गलती "लालच" की नहीं, बल्कि "अपडेट" न हो पाने की है।
शोधकर्ता ग्यूसेप डि पेलेग्रिनो (Giuseppe di Pellegrino) और उनकी टीम ने पाया कि जब कोई संकेत (जैसे शराब की बोतल देखना) पहले खुशी देता था लेकिन अब नुकसान पहुंचा रहा है, तो 'साइन-ट्रैकर्स' का दिमाग इस नई जानकारी को अपडेट (Update) नहीं कर पाता।
सरल शब्दों में, उनका दिमाग "पुराने डेटा" पर चल रहा होता है। उन्हें पता है कि परिणाम बुरा होगा, लेकिन उनका दिमाग उस संकेत (Cue) की पुरानी वैल्यू (Pavlovian Value) को बदल नहीं पाता। इसी वजह से वे जानते हुए भी वही गलती दोहराते हैं।
लत और चिंता का कारण (Implications for Addiction and Anxiety)
यह शोध बताता है कि क्यों कुछ लोगों के लिए शराब, सिगरेट या जुए की लत छोड़ना इतना मुश्किल होता है।
आम इंसान का दिमाग समझ जाता है कि "अब यह चीज नुकसानदेह है", तो वह रुक जाता है।
लेकिन एक 'साइन-ट्रैकर' का दिमाग उस संकेत (जैसे बार की रोशनी या दोस्तों का साथ) को देखते ही पुराने आनंद को याद करने लगता है और नई परेशानियों को नजरअंदाज कर देता है।
यही स्थिति एंग्जायटी (Anxiety) या चिंता में भी होती है, जहाँ इंसान उन चीजों से डरता रहता है जो अब खतरनाक नहीं हैं, क्योंकि उसका दिमाग डर को 'अन-लर्न' (Unlearn) नहीं कर पा रहा है।
निष्कर्ष: हम क्या कर सकते हैं?
यह समझना कि "मैं कमजोर नहीं हूँ, बस मेरा दिमाग धीरे अपडेट हो रहा है," एक बड़ी राहत हो सकती है। अगर आप भी खुद को बार-बार एक ही गलती करते हुए पाते हैं, तो:
संकेतों को पहचानें: देखें कि कौन सी चीज (Visual or Sound) आपके गलत फैसले को ट्रिगर करती है।
माहौल बदलें: यदि आपका दिमाग संकेतों से लड़ नहीं पा रहा, तो उन संकेतों को अपनी नजरों से दूर करें।
धैर्य रखें: विज्ञान कहता है कि आपके दिमाग को 'वैल्यू अपडेट' करने में दूसरों से ज्यादा समय लग सकता है, इसलिए खुद पर सख्त न हों।
लेखक की राय (Author's Note)
यह रिसर्च (JNeurosci: 1465-25.2025) हमें बताती है कि हमारी गलतियाँ सिर्फ हमारी इच्छाशक्ति (Willpower) की कमी नहीं हैं, बल्कि यह एक न्यूरोलॉजिकल प्रक्रिया है। खुद को समझने की दिशा में यह एक बड़ा कदम है।
स्रोत (Source):
ScienceDaily: Why some people keep making the same bad decisions (Dec 26, 2025)
Journal of Neuroscience: Reduced Pavlovian value updating alters decision-making in sign-trackers (Dec 22, 2025)
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