ट्रांसफार्मर बिजली को कम या अधिक कैसे कर देता है?(full information in hindi)

ट्रांसफार्मर बिजली को कम या अधिक कैसे कर देता है?(full information in hindi)
ट्रांसफार्मर बिजली को कम या अधिक कैसे कर देता है?

टेलीविज़न या रेफ्रीजरेटर में विद्युत विभवांतर (Electric Voltage) को नियंत्रित करने के लिए सभी लोग स्टेबलाइजर का प्रयोग करते हैं। इतना ही नहीं, सभी विद्युत वितरण केंद्र तथा विद्युत उत्पादन केंद्र भी वोल्टेज नियंत्रण के लिए तरह-तरह के ट्रांसफार्मर प्रयोग में लाते हैं। क्या आप जानते हो कि ट्रांसफार्मर विद्युत वोल्टेज को कम या अधिक कैसे करता है?

ट्रांसफार्मर एक ऐसा विद्युत उपकरण है, जो ए. सी. विद्युत-विभवांतर को कम या अधिक करने के काम आता है। यह विद्युत-चुंबकीय प्रेरण (Electro-Magnetic Induction) के सिद्धांत पर कार्य करता है। ट्रांसफार्मर में लोहे की पत्तियों से बनी हुई एक कोर (Core) होती है। इस कोर पर तांबे या एल्युमिनियम के तारों की दो कुंडलियां (Coils) लपेटी जाती हैं। जिस कुंडली में विद्युतधारा भेजी जाती है, उसे प्राथमिक कुंडली (Primary Coil) कहते हैं और जिस कुंडली को विद्युत उपकरण के साथ जोड़ा जाता है, उसे द्वितीयक कुंडली (Secondary Coil) कहते हैं। दोनों कुंडलियों में तारों के लपेटनों की संख्या (Number of Turns) अलग-अलग होती है।

जिस ट्रांसफार्मर की द्वितीयक कुंडली में लपेटनों की संख्या प्राथमिक कुंडली अपेक्षा अधिक होती है, वह विद्युत विभवांतर को अधिक कर देता है। ऐसे ट्रांसफार्मर को स्टेपअप (Step Up) ट्रांसफार्मर कहते हैं। इसी प्रकार जिस ट्रांसफार्मर की द्वितीयक कुंडली में लपेटनों की संख्या प्राथमिक कुंडली से कम होती है, वह विद्युत-विभवांतर को कम कर देता है। ऐसे ट्रांसफार्मर को स्टेप डाउन (Step Down) ट्रांसफार्मर कहते हैं। सेकेंडी और प्राइमरी में तारों की लपेटनों की संख्या का जो अनुपात होगा, विद्युत वोल्टेज भी उसी अनुपात में कम या अधिक हो जाएगी। एक ही ट्रांसफार्मर 'स्टेप अप' और 'स्टेप डाउन' दोनों कार्यों की क्षमता वाला बनाया जा सकता है।

अब प्रश्न यह उठता है कि दो कुंडलियों में लपेटनों की संख्या अलग-अलग होने से ट्रांसफार्मर विद्युतविभवांतर को कम या अधिक कैसे कर देता है?

जब प्राइमरी कोइल को ए. सी. विद्युत से जोड़ा जाता है, तब उसमें विद्युतधारा बहना शुरू कर देती है। इस विद्युत धारा के कारण कुंडली के चारों ओर बदलता हुआ एक चुंबकीय क्षेत्र पैदा हो जाता है। इस बदलते हुए चुंबकीय क्षेत्र के कारण द्वितीयक कुंडली में विद्युतधारा प्रेरित (Induce) हो जाती है। इस विद्युतधारा से पैदा होने वाला विद्युत-विभवांतर द्वितीयक कुंडली में लपेटनों की संख्या पर निर्भर करता है, यदि द्वितीयक में प्राथमिक की अपेक्षा कम लपेटनें होती हैं, तब विद्युत-विभवांतर कम हो जाता है और यदि लपेटनें अधिक होती हैं, तब विभवांतर बढ़ जाता है।

ट्रांसफार्मर केवल वैकल्पिक विद्युत के साथ ही काम करता है। यह डी. सी. विद्युत के साथ काम नहीं कर सकता, क्योंकि विद्युत चुंबकीय प्रेरण केवल वैकल्पिक विद्युत द्वारा ही संभव होता है।

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