ग्लोबल वार्मिंग से निबटने के लिए सूर्य की रौशनी को डिम करने की कोशिश

ग्लोबल वार्मिंग से निबटने के लिए सूर्य की रौशनी को डिम करने की कोशिश

एक न्यूज़ सुन कर आपके होश उड़ जायेगे और फिर पूरी खबर पढ़ कर तो आप सोचते ही रह जाओगे। न्यूज़ ये है कि वैज्ञानिकों का कहना है कि पृथ्वी जो ग्लोबल वार्मिंग के बढ़ते खतरे से जूझ रही है उसको कम करने के लिए क्या हम सूरज की रौशनी को डिम या कम कर सकते है ??

मतलब सूरज से जो तेज गरम गरम किरण आ रही है उनको बहुत डिम लाइट किया जा सकता है। हाँ एक बार सुनने में लगता है क्या ऐसा हो सकता है ?? सूरज की रौशनी को कम किया जाना संभव है ?? अगर ऐसा संभव है फिर तो मौसम बहुत सुहाना हो जायेगा ग्लोबल वार्मिंग भी कम हो जाएगी और सब बढ़िया होगा है ना ??

पर जैसा सोचने और पढ़ने में लग रहा है उतना सिंपल और आसान नहीं है बल्कि बहुत खतरनाक साबित हो ऐसा करना।  हाल ही में 60 वैज्ञानिकों ने एक पत्र में लिखा है कि इसमें कितना खतरा है और हमें ऐसा बिलकुल भी नहीं करना चाहिए।

चलिए आर्टिकल में शुरू से देखते है कि पहले तो ये जान लेते है ग्लोबल वार्मिंग कि वजह से हम कितने खतरे में है ??

  • क्या सच में सूरज कि लाइट को डिम किया जा सकता है और अगर हाँ तो कैसे किया जा सकता है ??
  • सोलर जियोइंजीनियरिंग पर अंतर्राष्ट्रीय गैर-उपयोग समझौता क्या है?
  • सूरज कि रौशनी को डिम करने से कितना खतरा है ??
  • वैज्ञानिकों का इस बारे में क्या कहना है??

ग्लोबल वार्मिंग क्या है -  इसके प्रभाव और उपाय ..

ग्लोबल वार्मिंग ग्रीनहाउस प्रभाव के कारण पृथ्वी की सतह के औसत तापमान में वृद्धि है। ग्लोबल वार्मिंग की परिभाषा ग्रीनहाउस प्रभाव के कारण पृथ्वी की औसत सतह के तापमान में वृद्धि है। ग्लोबल वार्मिंग पर कई वर्षों से चर्चा की गई है और यह वैज्ञानिकों और राजनेताओं के बीच बहस का विषय रहा है। ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव दूरगामी हैं। इससे न केवल पर्यावरण प्रभावित होता है बल्कि मानव जीवन भी प्रभावित होता है।

जलवायु परिवर्तन ने पर्यावरण में भारी परिवर्तन किया है जिसने विभिन्न तरीकों से मनुष्यों के जीवन पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है। समुद्र के स्तर में वृद्धि सबसे आम है, जिससे तटीय क्षेत्रों में बाढ़ आ गई है और इससे मलेरिया और डेंगू बुखार जैसी बीमारियों का खतरा बढ़ गया है।

ग्लोबल वार्मिंग का समाधान यह होगा कि ग्रीनहाउस गैसों को कम किया जाए ताकि उन्हें वायुमंडल में न छोड़ा जाए, जिससे पृथ्वी पर तापमान में कमी आएगी। इसी ग्लोबल वार्मिंग को कम करने के लिए साइंटिस्ट ने सूरज की रौशनी कम करके पृथ्वी के तापमान में कमी लाने का तरीका सोचा है पर खूब सारे वैज्ञानिक इसके खिलाफ है और उनके अपने तर्क है जो कि इसकी निंदा करते हुए चेतावनी दे रहे है कि अगर सूरज कि रौशनी को कृत्रिम तरीके से कम करके ग्लोबल वार्मिंग को कम करने का प्रयास करोगे तो उसके दुष्प्रभाव भी होंगे।

क्या सच में सूरज कि लाइट को डिम किया जा सकता है और अगर हाँ तो कैसे किया जा सकता है ??

वैज्ञानिक जानते हैं कि एरोसोल के कण अस्थायी रूप से पृथ्वी की सतह को ठंडा कर सकते हैं।  जी हाँ ऐसा ही 1991 में माउंट पिनातुबो के विस्फोट से महीन राख के कण आसमान में फ़ैल गए थे जिसके कारण सूरज कि रोशनी सीधे तौर पर नहीं आ पा रही थी और यहाँ के तापमान   लगभग दो वर्षों के लिए वैश्विक तापमान से 0.5 डिग्री सेल्सियस (0.9 ° F) की कमी आई। तो इसी तरीके से कृत्रिम रूप से सूर्य की रौशनी को डिम करना भी संभव है।

पर इस से क्या क्या प्रभाव पड़ सकता है पर्यावरण पर इस बारे 60 वैज्ञानिको ने जो पत्र लिखा है और जो बाते कही है उनको भी समझना बहुत जरुरी है।

सूरज कि रौशनी को डिम क्यों नहीं करना चाहिए,क्या कहते है वैज्ञानिक ??

कार्बन उत्सर्जन के कारण ग्लोबल वार्मिंग को ऑफसेट करने के लिए, एक कृत्रिम एयरोसोल कण ढाल को कई दशकों में लगातार भरने की आवश्यकता होगी, जो कि जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन के एक लक्ष्य के विपरीत होगा।

अगर इसे अचानक बंद कर दिया जाता है, तो सुरक्षात्मक एयरोसोल क्लाउड का मास्किंग कूलिंग प्रभाव जल्दी से वायुमंडल में सभी संचित ग्रीनहाउस गैसों को एक ही झटके में ग्रह से टकराने की अनुमति देगा। नेचर इकोलॉजी एंड इवोल्यूशन में प्रकाशित 2018 येल अध्ययन के अनुसार, हाल के जलवायु परिवर्तन की तुलना में वैश्विक तापमान अचानक चार से छह गुना तेजी से बढ़ सकता है।

संयुक्त राष्ट्र वर्कफ्रेम के अनुसार " जलवायु प्रणाली के साथ मानव हस्तक्षेप खतरनाक हो सकता है।"तो एरोसॉल कण को कृत्रिम तरीके से बना कर सूर्य की रौशनी को डिम करके पृथ्वी को ठंडा रखने के खिलाफ 60  वैज्ञानिको ने खुला पत्र है उनका क्या कहना है ??

इन पर्यावरण विशेषज्ञ में जर्मन पर्यावरण एजेंसी डिर्क मेसनर के अध्यक्ष अमिताव घोष प्रमुख लेखकों में से एक हैं। अन्य  विशेषज्ञों में कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के एक जलवायु विज्ञानी माइक हुल्मे और स्टॉकहोम पर्यावरण संस्थान के निदेशक आसा पर्सन शामिल हैं।

इन्होने अपने पत्र के माध्यम से इस विषय में तत्काल राजनितिक करवाई की मांग की है और कहा है कि इस सोलर जिओ इंजीनियरिंग विषय में अच्छे से विचार नहीं किया या है जिसके कारण बहुत ज्यादा मौसम में बदलाव हो सकता है। 

विशेषज्ञों के अनुसार सूर्य की रौशनी को मंद करने से -

  • आसमान का रंग बदल सकता है।
  • ओजोन लेयर और महासागरों की परत हमेशा के लिए बदल सकती है।
  • पेड़ पोधो में होने वाले प्रकाश संश्लेषण पर भी प्रतिकूल प्रभाव पर सकता है जिस से पेड़ पौधे ,पशु ,पक्षी और प्राणियों में भी भोजन और पानी की बहुत बड़ी समस्या प्रकट हो सकती है।

पत्र में पांच तत्काल उपायों को लागू करने की आवश्यकता का वर्णन किया गया है। कोई पेटेंट नहीं है, कोई बाहरी विशेषज्ञ नहीं है, कोई सार्वजनिक वित्त पोषण नहीं है, कोई कार्यान्वयन नहीं है और अंतरराष्ट्रीय संस्थानों से कोई समर्थन नहीं है।

 वैगनिंगन यूनिवर्सिटी में ग्लोबल एनवायर्नमेंटल गवर्नेंस की प्रोफेसर आरती गुप्ता का इस विषय में कहना है कि “कुछ चीजें हमें शुरुआत में ही प्रतिबंधित कर देनी चाहिए। ऐसा करना संभव हो सकता है, लेकिन यह बहुत जोखिम भरा है। आरती गुप्ता ने आगे कहा "संभावित खतरों के बावजूद, किसी व्यक्ति, कंपनी या देश को एकल मिशन शुरू करने से रोकने के लिए आज कोई तंत्र मौजूद नहीं है। "

सोलर जियोइंजीनियरिंग पर अंतर्राष्ट्रीय गैर-उपयोग समझौता क्या है?

सोलर जियोइंजीनियरिंग, जिसे सोलर रेडिएशन मैनेजमेंट (SRM) के रूप में भी जाना जाता है, सूर्य के कुछ प्रकाश और गर्मी को वापस अंतरिक्ष में परावर्तित करके पृथ्वी को ठंडा करने का एक तरीका है।

अंतर्राष्ट्रीय गैर-उपयोग समझौता एक अंतर्राष्ट्रीय संधि है जो SRM को प्रतिबंधित करती है। 6 नवंबर, 2017 को जिनेवा में 100 से अधिक देशों द्वारा समझौते पर हस्ताक्षर किए गए थे। सोलर जियो इंजीनियरिंग विभिन्न तरीकों का उपयोग करके पृथ्वी की जलवायु को बदलने की प्रक्रिया है। अंतर्राष्ट्रीय गैर-उपयोग समझौता एक अंतर्राष्ट्रीय समझौता है जो किसी भी देश को अपने दम पर इस तकनीक का उपयोग करने से रोकता है।

यह समझौता देशों के बीच संघर्ष से बचने और पर्यावरण की रक्षा के लिए बनाया गया था।

क्या सूरज की रौशनी कम करना खतरनाक है ??

जी हाँ यह खतरनाक तो है।  सूरज की रौशनी कम करने के कारण पर्यावरण पर तो प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगे ही साथ ही अगर इसको अचानक से रोक देने से ग्रीन हाउस गैसों के कारण पृथ्वी पर तापमान एकाएक 4  से 6  गुना तक पद सकता है जो की बेहद खतरनाक हो सकता है। 

आरती गुप्ता का यह भी मानना ​​है कि सूर्य की रोशनी कम करना रासायनिक हथियार और मानव क्लोनिंग जैसी उच्च जोखिम वाली तकनीक है।

ग्लोबल वार्मिंग की समस्या को कम करने के लिए सूरज की रौशनी को कृत्रिम तरीके से कम करना इतना आसान नहीं होगा जैसा की सुनने में लगता है ।  हाँ राष्ट्रों के सामने डीकार्बोनाइजेशन हासिल करने की जरुरत है पर उसके लिए हम मानव समाज को मिल कर एक साथ पर्यावरण  हित में होने वाले कुछ ठोस कदम उठाने पड़ेगे।

कोरोना लोक डाउन की वजह से पुरे विश्व में कार्बन का उत्सर्जन बहुत कम हुआ जिसके कारण पर्यावरण पर एक सुखद असर पड़ा था वो एक महामारी के कारण जरूर हुआ पर ऐसे ही किसी तोश संकल्प से हम जहरीली गैसों का उत्सर्जन कम करके पर्यावरण को भी काफी हद तक संतुलित कर सकते है और हम सूरज की रौशनी कम करने जैसे खतरनाक टेक्निकल तरीको से भी बचा जा सकता है।

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