ब्लैक होल्स क्या हैं : black hole kya hai

ब्लैक होल्स क्या हैं? | Black hole kya hai?

20वीं शताब्दी में खगोलविदों ने आकाश में अंधेरे क्षेत्रों (Dark areas) के होने की भविष्यवाणी की थी। इन क्षेत्रों का गुरुत्वाकर्षण इतना अधिक है कि उनके अन्दर जाने वाली कोई भी चीज उनसे बाहर नहीं निकल सकती। यहां तक कि प्रकाश भी इन क्षेत्रों के गुरुत्वाकर्षण से नहीं बच सकता। इसलिए वे दिखाई नहीं पड़ते। इन क्षेत्रों को ब्लैक होल्स या कॅलेप्सर्स (Collapsars) कहते हैं।

black hole kya hai
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ब्लैक होल एक जर्मन खगोलशास्त्री कार्ल स्वार्ज़चाइल्ड ने सन 1907 में ब्लैक होल्स होने के बारे में भविष्यवाणी की थी। उन्होंने सैद्धान्तिक रूप से यह सिद्ध कर दिया था कि वे सभी तारे, जिनका द्रव्यमान (Mass) सूर्य से बहुत अधिक है, अंत में कृष्ण विवर (Black hole) बन जाते हैं।

प्रसिद्ध वैज्ञानिक जे.रॉबर्ट ओपनहाइमर तथा हार्टलैंड एस.सिन्डर ने सापेक्षता के सामान्य सिद्धान्त (General Theory of Relativity) का उपयोग कर सर्वप्रथम कृष्ण विवर (Black Holes) के अस्तित्व को सिद्ध किया था।

आइये ! विचार करें कि एक विशाल तारा अदृश्य कष्ण विवर (Black Hole) कैसे बन जाता है ?

हम एक ऐसे तारे का उदाहरण लेते हैं, जिसका द्रव्यमान सूर्य से अधिक है। उसका आकार दो शक्तियों के कारण सामान्य (Normal) रहता है। पहली शक्ति हैतारे के द्रव्य का विस्तार करने की शक्ति, जो इसके अत्यधिक गर्म तापमान के कारण होती है और दूसरी शक्ति है- अत्यधिक गुरुत्वाकर्षण शक्ति, जो तारे के द्रव्य को संकुचित (Contract) करती है।

तारे के जीवन में, करोड़ों वर्षों के बाद एक ऐसी स्थिति आती है कि उसका नाभिकीय (Nuclear) ईंधन घट जाता है, जिसके कारण उसका आन्तरिक तापमान भी गिर जाता है। अतः इसके विस्तार की शक्ति कम होने लगती है और दूसरी संकुचन-शक्ति अर्थात गुरुत्वाकर्षण बल बढ़ने लगती है। इससे तारे का सिकुड़ना शुरू हो जाता है, इस क्रिया को अन्तःस्फोट (Implosion) कहते हैं।

इस प्रक्रिया में तारे के अणु टूटकर इलेक्ट्रॉन्स, प्रोटॉन्स और न्यूट्रॉन्स में बदल जाते हैं। इलेक्ट्रॉन्स का एक-दूसरे से प्रतिकर्षण (Repulsion) तारे के संकुचन को रोकता है। इस प्रक्रिया में तारा घटकर अपने मूल आकार का एक बटा सौवां भाग रह जाता है। इस स्थिति में तारे को सफेद बौना (white dwarf) कहते हैं। सफेद बौने में गुरुत्वाकर्षण खिंचाव बढ़कर अपने मूल बल से 10,000 गुना हो अधिक हो जाता है, किन्तु द्रव्यमान 1.4 गुना कम हो जाता है। 

कुछ अवस्थाओं में गुरुत्वाकर्षण का खिंचाव इतना अधिक शक्तिशाली हो जाता है कि वह इलेक्ट्रॉनों के प्रतिकर्षण पर भी हावी हो जाता है, जिससे तारा और अधिक संकुचित होने लगता है। संकुचन के दौरान इलेक्ट्रॉनों और प्रोटॉनों संयुक्त न्यूट्रॉन बन जाते हैं। इस स्थिति को न्यूट्रान तारा (Neutron star) कहते हैं। तब उसका आकार घटकर बौने तारे (Dwarnstar) के आकार का पांच सौवां भाग रह जाता है और गरुत्वाकर्षण खिंचाव मूल तारे के खिंचाव से करीब 100,000,000,00 गुना बढ़ जाता है। 

न्यूट्रॉन तारे से निकलने वाला प्रकाश, उसकी ऊर्जा को कम कर देता है और इसके परिणामस्वरूप उसका आकार और अधिक घटता जाता है। धीरे-धीरे एक ऐसी स्थिति आ जाती है, जब इस तारे से किसी भी प्रकार का विकिरण Radiation) बाहर नहीं निकलता। तब इसे कृष्ण विवर (Black Hole) कहते हैं, जो कि ब्रह्मांड का सबसे छोटा, सबसे घना (अदृश्य) पिंड होता है। 

वैज्ञानिक अब भी ब्रह्मांड में ब्लैक होल्स (कृष्ण विवर) के वास्तविक अस्तित्व के लिए प्रमाण पाने की खोज में लगे हैं। उन्होंने सन 1974 में कृष्ण विवर के अस्तित्व का सबूत हंस (Cygnus) तारामंडल में पाया था। सन 1983 में अमरीका के खगोल वैज्ञानिकों ने भी इस दिशा में महत्वपूर्ण खोज की है।

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